Jaane Kahaa ??? The Revolution
अपडेट-10
इतना कहकर विक्रम की आँखो मे आँसू आ गये और फिर से वो पानी पीने को उठा, अभी तक किशोरीलाल कुछ भी नही बोला था वो सिर्फ़ विक्रम के चेहरे के रंग ही देखता था। लेकिन विक्रम की आवाज़ मे उसे सच्चाई की खनक बजती हुई सुनाई देती थी। लेकीं माइंड कुछ अलग दिशा मे जा रहा था। वो जान ना चाहता था की आख़िरकार सुनंदा के बॉडी पर इंजुरी के निशान कहा से आए अगर उस पर बलात्कार की कोशिश नही की गयी है तो फिर क्या हुवा था। और अगर विक्रम इतना ही सुनंदा को चाहता था तो उसकी हाजरी मे ये कैसे संभव था की सुनंदा को कोई मा का लाल छु के जाये। आख़िरकार सुनंदा उसकी होने वाली पत्नी थी।
विक्रम ने पानी पीकर फिर से शुरू किया। अब वो पूरी कहानी का क्लाइमॅक्स बतानेवाला था, किशोरीलाल एक्ध्यान से सुन ने को बेताब था।
सुबह जब 6 बजे विक्रम को उठाया गया, तब उसकी नींद सिर्फ़ एक या डेढ़ घंटे की हुई होगी। उसकी आँखे लाल थी क्यूकी पूरा आराम नही हो सका था। वो फ्रेश तो हो गया, सोचता था की सुनंदा के सामने तक ना जाउ, लेकिन अंकल के पास तो जाना ही था। मजबूरी से वो चला गया। अंकल और सुनंदा तो फ्रेश होकर बैठे थे लेकिन आंटी तैयार हो रही थी। विक्रम ने अंकल का हालचल पुछा लेकिन सुनंदा के सामने देखा तक नही, नारायणप्रसाद तो नॅचुरली जानता भी नही था की इनदोनो मे कल से क्या रिश्ता जुड़ चुका है। वैसे भी कभी भी विक्रम सब की हाजरी मे सुनंदा से नही बोलता था। ये तो पुराने संस्कार थे की बुजुर्ग के सामने यंग्स्टर्स कभी एक दूसरे के सामने भी देखने की हिम्मत नही करते थे। तो सवाल ही नही उठता था की नारायणप्रसाद को मालूम हो की विक्रम को क्या तकलीफ़ है। ऐसे ही पुरा दिन चलता रहा।
सुनंदा ने महसूस कर लिया की विक्रम नाराज़ है। फिर शाम के खाने के बाद उन सब की रामेश्वरम से कन्याकुमारी की यात्रा शुरु हुइ। अब तक के सफ़र मे ज्यादातर नारायणप्रसाद और विक्रम साथ बैठते थे और सुनंदा अपनी माताजी के साथ बैठती थी। लेकिन पता नही क्या सूजा की पिछली दो बार से नारायणप्रसाद खुद अपनी पत्नी के साथ बैठते थे और विक्रम को बोला,”बेटे तुम सुनंदा के साथ बैठो, अब तुम्हे ही इसको संभालना है।”
सुनंदा मन ही मन राज़ी हो गयी लेकिन अपने पिताजी के सामने नज़रे जुकी ही रखा। विक्रम उसके साथ बैठा तो सही फिर भी मूह नारायणप्रसाद तरफ रखकर के उसी से बाते करता रहा। बस मे पुरी रात का सफर था। शाम के वक़्त खाना खाने के समय भी विक्रम ने सुनंदा के सामने कुछ खास ध्यान नही दिया। सुनंदा अब जान चुकी थी की भाईसाहब नाराज़ क्यू है लेकिन लाचार थी क्यूकी अपने मा बाप के सामने वो क्या बताती। लेकिन उसने मन ही मन मे सोच रखा था की कोई बात नही जब मौका आयेगा वो मना लेगी विक्रम को।
ऐसे ही बस मे शाम का खाना खाने के बाद सब को नींद आने लगी तो नारायणप्रसाद और उनकी पत्नी की आँखे लग गयी। जब सुनंदा ने देखा की उसके पिताजी और माताजी सो चुके थे तो उसने इशारा करके कई बार विक्रम को उस तरफ देखने को कहा लेकिन विक्रम ने ध्यान नही दिया। आख़िरकार सुनंदा ने हाथो से विक्रम की कमर पे गुदगुदी की। विक्रम ने ज़ट से सुनंदा का हाथ हटा लिया। सुनंदा ने फिर से किया, दो तीन बार किया तो विक्रम ने ज़टके से उसका हाथ हटा लिया। आखरी बार जब सुनंदा ने विक्रम को मनाने के लिये हसकर फिर से उस के कमर पे गुदगुदी की तो विक्रन मे फिर से उसका हाथ जटॅके से हटाना चाहा। दो तीन बार वो कर चुका था लेकिन इस बार उस का जोर कुछ ज्यादा ही था और सुनंदा का हाथ बस की खुली हुइ बारी के लोहे की सलाखो के साथ जोर से टकराया।
और सुनंदा के मूह से हल्की सी चीख निकल गयी। पिछेवाले ने पुछा भी क्या हुवा। सुनंदा ने बताया,”कुछ नही नींद आ रही थी तो हाथ गीर गया और विंडो पे जा गिरा।” कहकर उसने विक्रम की ओर देखा, वो अभी भी चुप था लेकिन अब विक्रम उस की तरफ कम से कम देख तो रहा था। अभी उस को पता नही था की सुनंदा पे क्या बीत रही थी।
विक्रम ने देखा की सुनंदा अपने हाथ दबाए सिसकारिया मार रही थी। शायद बहुत जोरो से उसका हाथ विंडो पे पटका था। सुनंदा की नज़रे नीची अपने हाथो पर थी, गुस्से मे विक्रम कुछ बोला नही था लेकिन उसकी तरफ तीरछी नज़रो से देख रहा था। जब हाथ को थोड़ा सा आराम मिला तो सुनंदा और विक्रम की नज़रे मिली, सुनंदा ने विक्रम की आँखो मे स्पष्ट गुस्सा और नफ़रत देखी और आँखो मे रताश थी, स्पष्ट था की उसे नींद नही आई है, उल्टा विक्रम ने जब सुनंदा का चेहरा देखा तो दर्द से भरा चेहरा था और बड़ी बड़ी आँखो के कोने पर आँसू जमे पड़े थे।
विक्रम को ठीक नही लगा अपना गुस्सा और सुनंदा पर थोड़ी दया सी आई की वो सामने से तो बुला रही थी, लेकिन एक पुरुष का ईगो हर्ट होता है तो जल्दी से कभी मानता ही नही। वैसे भी पुरा दिन बीत चुका था लेकिन अपने ईगो की वजह से विक्रम केवल तीरछी निगाहो से देख रहा था और अपनी नज़रे हटा लेता था। सुनंदा सीधी नज़रो से सबकुछ देख रही थी, उसे पता था की विक्रम का ईगो उसे मौन रहने पर मजबूर कर रहा है। उसने दोनो हाथ जोड़कर माफी का इशारा किया, उसका एक हाथ अभी भी दुख रहा था, वो लाचार नज़रो से विक्रम से गिड़गिडा रही थी। लेकिन फिर भी विक्रम कुछ नही बोला तो वो समज गयी की विक्रम को सख़्त बुरा लगा है।
फिर उसने सोचा की ये सही था की रात को वो मिलने ना जा सकी, लेकिन उसकी मजबूरी ये थी की थकान से कब उसे नींद आ गयी उसे पता भी नही चला था और इतनी गहरी नींद मे थी की उसे समय का भी एहसास नही रहा था। जब सुबह वो उठी तो अपने मा-बाप की वजह से वो विक्रम को मिल भी नही पाई थी। और जब विक्रम मिला तो तब से वो खफा था और कुछ भी बात सुन ने और समजने को तैयार नही था।
आज उसे स्त्री सहज अपनी मजबूरी पर बहुत अफ़सोस हुवा की उसकी हालत ना सहन कर सकती थी की ना तो बता सकती थी। उसका सुन ने वाला दूसरा और तो कोई था नही तो वो किस को अपनी मजबूरी कहती। उसने फिर असहाय नज़ारो से विक्रम को मनाने की कोशिश की और फिर हाथ जोड़े की मूज़े माफ़ कर दो लेकिन विक्रम का फिर वोही मूड रहा तो उसने हल्के से नज़रे फेर दी और विंडो की ओर बाहर देखने लगी। उसकी आँखो मे अब आँसू बहने लगे। वो सोच रही थी की कल रात अगर उसने भावनाओमे बहकर हद से बाहर विक्रम को सब कुछ समर्पण कर दिया था लेकिन अगर किसी वजह से वो उसे दोबारा नही मिल पाई तो उसका ये हाल हो गया। तो क्या मर्द सिर्फ़ यही चाहता है ओर कुछ नही ? उसे आज अपने लड़की होने पर नफ़रत हो गयी की ऐसी उनसे कौन सी बड़ी भूल हो गयी थी की जिसे वो अपना सबकुछ सोपनेवाली है वो उस से बात करने तो क्या पलटकर देखने को भी तैयार नही था।
अभी भी उसे हाथ मे थोड़ा सा दर्द हो रहा था। लेकिन अंदर का दर्द और भारी हो गया और उसकी आँखो ने गंगा जमना बहा दी। विक्रम तीरछी नज़रो से अभी भी उसे ओब्ज़र्व कर रहा था, उसका मन किया की वो उस से बात करे की वो चेहरा पलटकर क्यू बैठी है, लेकिन उसे ये पता नही था की वो अपने हाल पर रो रही है।
अचानक एक स्पीडब्रेकर मे बस को धक्का लगा तो सुनंदा का सिर फिर से बारी की सलाखो पर टकराया और एक कील भी उसे लग गइ तो उसके मूह से फिर से चीख निकल गइ। वो अंजान सी रो रही थी और अचानक उसका सिर टकराया था और साथ मे विक्रम भी उसी की और गिरा और विक्रम का सिर उस से भी जोरो से उसके कंधे पर टकराया। सुनंदा को दोनो ओर से पीड़ा हुई उसने एक हाथ से सिर दबाया और दूसरे हाथ से अपना कंधा। विक्रम तो फिर से आराम से बैठ गया और अपना एक हाथ सुनंदा के कंधो पर छुकर के जैसे सॉरी बोल दिया। उसने देखने की तस्दी भी नही ली की सुनंदा को कैसे चोट पहुची है।
सुनंदा को बाहरी तीन चोटे लग चुकी थी, तीनो जगह पे दर्द हो रहा था, सिर पर तो थोडा सा लहु भी जम गया । किंतु अंदर जो दूसरी चोट लगी थी की अभी भी विक्रम उस से नाराज़ है उस से वो बेरुख सी हो गयी। वो चेहरे को दोनो हाथ से ढककर आगे की सीट पर जुककर खुब रोई। पुरी बस मे कीसो को कुछ पता नही था। क्युकी स्पेडब्रेकर्स की वजह से जरुर कोइ कोइ पेसेंजर्स की नीन्द उडी थी, लेकिन फिर से सब के सब सो रही थे।
विक्रम को लगा की शयद सुनंदा ऐसे सो रही है और उस ने न जानने का ढोंग कर के अपने बाल और चेहरा सही कर ने के बहाने से सुनंदा को जोर से अपना हाथ सिर पर दे मारा। लगता ऐसा था की बस की उछाल की वजह से शायद उस का हाथ इधर उधर हो गया हो लेकिन विक्रम ने जान बुज कर चेक कीया था की वास्तव मे सुनंदा जाग रही है की सो रही है।
सुनंदा को एक और चौट लगी उस ने फिर से चेहरा विक्रम की और घुमाया और फिर से विंडो की ओर मूह रख के बैठ गयी। अभी भी वो रोये जा रही थी क्युकी ये कैसा माहॉल था की वो अपने भावी पति के साथ बैठी थी और उसे लगातार अंदर और बाहर चौट पे चौट लग रही थी। उसने फिर से नज़रे उठाकर लाचार नज़रो से विक्रम को देखा की दोनो की आँखे चार हुई क्यूकी तीरछी नज़रो से विक्रम भी देख ही रहा था।
जब आँखे चार हुई तो विक्रम ने सुनंदा की बड़ी बड़ी आँखो मे आँसू की धारा देखी और उसकी सुंदर आँखे लाल हो चुकी थी। अब रोती सूरत को देख कर वो पिघल गया और अचानक उसने देखा की सुनंदा लगातार अपने हाथ, कंधे और सिर को बारी बारी दबा रही है। उसने सुनंदा के बाए कंधे पर अपना हाथ ले जाकर उसे अपनी बाहो मे लेना चाहा। अभी भी अंकल आंटी सोये हुवे थे ये उसने चेक कर लिया था। सुनंदा विक्रम की बाहो मे तो आ गयी थी लेकिन बाहर और अंदर के डबल दर्द से अभी भी वो लाचार नज़रो से इधर उधर देख रही थी। वो अपने आप को बिल्कुल अकेला महसूस कर रही थी। विक्रम ने जैसे ही हल्के से उसका सिर और कंधा फुसलाया ता की दर्द कम हो जाए, सुनंदा के मुह से सिसकारिया छुट गइ। थोड़ी देर बाद जब उसका हाथ कंधो से फिसलकर बाए हाथ की कोहनी पर जा गिरा तो सुनंदा के मूह से हल्की सी आहा निकल गयी। सुनंदा को भी पता नही था लेकिन जब विक्रम का ध्यान गया तो देखा की जिस ज़टके से उसने सुनंदा का हाथ हटाया था और विंडो पे जा गिरा था वो कोहनी पे इतना ज़ोर से टकराया होगा की वहा सूजन आ चुकी थी और कोहनी की सूजन ज़्यादा दर्द देती है। उस नी धीरे धीरे वो हाथ अपने हाथ मे ले कर देखा तब उस का ध्यान सिर पर भी गया जहा लहु के निशान पड चुके थे और अब उसे पता चला की सुनंदा बाहर और अंदर कितना दर्द महसूस करती होगी। अब उसे अपने रूड बिहेवियर पर पछतावा हुवा लेकिन अब तो तीर निकल चुका था। उसे एहसास हुवा की उसने तो सुनंदा को मौका ही नही दिया था की कल रात वो क्यू नही आ सकी।
विक्रम का क्रोध और नफरत अब गायब हुइ और क्रोध की जगह रहम ने ले ली और वो आहिस्ता आहिस्ता बारी बारी सुनंदा की कोहनी, सिर और कंधे पर मालिश करने लगा। सुनंदा हल्की हल्की आहे भरते हुवे चुप बैठी रही और लाचार नज़रो से इधर उधर देख रही थी। उसे अब ये भी डर था की उनके मा बाप कही उठ न जाए। उसने आँखो से हल्के इशारे से वो बात विक्रम को समजाने की कोशिश की और धीरे से विक्रम का हाथ अपने शरीर से हटाया और साडी पूरे बदन पर ढककर अपना दर्द सहन कर के आँखे बाँध कर के बैठ गयी। फिर भीए कुछ आंसु आंखो से बाहर बह ही गये । विक्रम ने भी उसका इशारा समजकर अपने हाथ वापस लेकर आराम से बैठ गया लेकिन उसकी नज़र अब कॉन्स्टेंट सुनंदा को देख रही थी। सुनंदा की आँखो से थोड़ी ही देर मे फिर से आँसू निकल आए। अब विक्रम से नही रहा गया उसने अपने हाथो से आँसू पौछ दिये। सुनंदा ने आँखे खोली और फिर बेरुख नजरो से विक्रम को देखा, उसमे बोलने की बिल्कुल ताक़त नही थी की उसकी कोई ग़लती नही थी क्यूकी वो विक्रम के बिहेवियर की वजह से टूट चुकी थी। उसने बेबस नज़रो से आँखे फिर इधर उधर फिराई। विक्रम अब सबकुछ समजता था, उसने सुनंदा का चेहरा उठाकर उसके सामने किया और दो हाथ जोड़कर सॉरी बोला। सुनंदा को कुछ नही सूज रहा था लेकिन अनायास उसने अपने हाथ विक्रम के हाथ मे रखकर धीरे से पलके बाँध करके खोली और मौन भाषा मे बोल दिया की सॉरी की कोई ज़रूरत नही है और फिर नज़रे उठाकर विक्रम के सामने देखने लगी। अंदर और बाहरी चौट की वजह से उसे आराम नही मिल रहा था। और विक्रम अब उसे ज़्यादा चौट पहुचाना भी नही चाहता था।
थोड़ी देर मे सुनंदा का दोनो दर्द कुछ कम हुवा तो उसने विंडो मे बाहर देखते देखते ही विक्रम को सॉरी बोला। विक्रम ने उसका हाथ फिर उसके बाए कंधे की और से ले जाकर उसे बाहो मे भरना चाहा जैसे वो कह रहा हो की अब उसे कुछ भी कहने की ज़रूरत नही है लेकिन उसका हाथ सीधा सुनंदा की कोहनी से जाकर टकराया और सुनंदा से फिर आह निकल गयी। और सुनंदा ने फिर नज़रे उठाकर विक्रम को देखा। वो उसे मना भी नही कर पाई। विक्रम धीरे धीरे से उस सूजन पर मालिश करने लगा। अभी सुनंदा को उसकी ये मालिश चुभ रही थी, लेकिन आख़िर बेबस औरत थी ना सबकुछ सहकर भी चुप रही। सिर्फ़ उसके मूह से दर्द सहन नही होने की वजह से आहे निकलती रही।
नाइट का डिनर भी खाते वक़्त सुनंदा को उस हाथ को उठाने मे बड़ी तकलीफ़ हो रही थी। उसके बाद रात भर विक्रम नींद की आगोश मे चला गया और सुनंदा भी रातभर नींद की ज़पकिया खाती रही सुबह 7 बजे विक्रम की आँखे खुली तो सुनंदा उसके कंधो पे गिरी थी। अब उसने आराम से उसकी कोहनी देखी। बड़ी सूजन आ चुकी थी उस पर। उसने देखा की अभी भी बहुत लोग सो रहे थे तो उसने चान्स लेकर सुनंदा के गालो पर चुंबन कर दिया। दो तीन बार से कुछ फ़र्क नही पड़ा तो उसने हल्के से गालो को काट लिया, सुनंदा ने आँखे खोली और फिर बंध कर ली। शायद गहरी नींद मे थी।
अब विक्रम मूड मे था उसने हल्के से मौके का फयदा उठाना चाहा और सुनंदा की आँखे जट से खुल गयी और थोड़ी ही देर मे उसे एहसास हुवा की विक्रम ने क्या किया है। उसने विक्रम का हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन विक्रम ने हाथो पर ओर ज़ोर डाला ।सुनंदा ने कुछ इनकार नही किया और नज़रे उठाकर विक्रम को बेबस नज़रो से देखती रही। कुछ देर तक ये खेल चालू रहा, विक्रम हल्की हल्की मुस्कान देता हुवा बढ़ता ही जा रहा था और सुनंदा बिल्कुल वोही चेहरा बनाकर बिना इनकार किये अपनी लाल आँखो से विक्रम को देखती ही रही। जब विक्रम को एहसास हुवा की सुनंदा उसका कुछ रेस्पोंस नही दे रही है तो उसका हाथ रुक गया। थोड़ी देर इशारे से उसने सुनंदा को पुछा की क्या हुवा लेकिन सुनंदा कॉन्स्टेंट उसकी तरफ देखती ही चली जा रही थी।
अचानक सुनंदा की आंखे बडी हुइ और उस ने साडी का पल्लु हटाया अपनी नज़रे बिना ज़पकाए विक्रम के सामने ही रखी और पूरी तरह सरेंडर कर के जैसे विक्रम को लाचारी से सबकुछ सौप दिया। विक्रम देखता ही रह गया उसे लगा की सुनंदा ने मजबूरी मे, लाचारी मे, हारकर समर्पण किया था। ये क्रिया एक प्रेमिका की नही बल्कि एक भूखे शेर को सरेंडर की क्रिया साबित हो रही थी। उसने अपना हाथ हटाने की कोशिश की लेकिन सुनंदा ने उसका हाथ मजबूती से दबाए रखा और मौन भाषा मे कह दिया की तुम्हे सिर्फ़ यही चाहिए तो ले लो। जितना भी चाहे वो अपनी मर्ज़ी से बेनीफ़िट उठा सकता है।
अब विक्रम को एहसास हुवा की सुनंदा बिल्कुल सरेंडर कर के उसे बता रही है की वो कितना सेल्फिश है। उसने जल्दी से अपना हाथ छुडाया और इशारा किया। सुनंदा ने कुछ नही किया बस उसे सीधी नज़रो से देख रही थी। उसे कुछ नही फ़र्क पड़ता था अब क्यो की बहुत गहरी चौट लग चुकी थी उसको, अब विक्रम ने दो हाथ जोड़े और हल्के से बोला,”प्लीज,मेरा ये मतलब नही था।“
जब सुनंदा ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया तो अजूबाजू देखकर संभल के विक्रम ने खुद उसके पल्लु को ठीक किया, लेकिन ये उसके बस की बात नही थी। जब उस से नही हुवा तो उसने लाचारी से सुनंदा को फिर रिक्वेस्ट की,”सुनंदा प्लीज़ संभल जाओ, तुम्हारी मंज़ूरी के बिना कुछ नही करूँगा प्लीज़।“
सुनंदा ने कोई रेस्पॉन्स नही दिया लेकिन नज़रे विक्रम के चेहरे पर जमाए रखी और धीरे से बोली,अब मुजे काट ही लो और ख़तम कर दो, और कुछ चाहिए तो बोलो जब भी बोलॉगे, जहा भी बोलोगे सबकुछ आप के सामने रख दूँगी, तुम्हे यही चाहिए तो प्लीज़ बुजा लो अपनी प्यास, काट लो, और नौच लो मुजे” कहते कहते उसकी आँखो मे फिर आँसू छा गये…।
***
कन्याकुमारी मे पहुचे तो दोपहर होनेवाली थी, पास मे ही एक बड़ा कमरा किराये पे लेकर फ्रेश होकर खाना खाकर सब लोग समुंदर किनारे पे आए और विवेकानंद रोक देखने के लिये बोट मे बैठे। वहा बोट मे बैठना ख़तरे से खाली नही है। अभी तो वहा एंजिन बोट आ चुकी है जो आप को किनारे से समुंदर के बीच मे स्थित विवेकानंद रोक तक ले जाती है। कन्याकुमारी का समुंदर इतना तूफ़ानी है की एंजिन बोट दोनो तरफ हिलती है तो आप जैसे रोलर कोस्टर मे बैठे हो ऐसा एहसास होता है, दो तीन मजले तक आप को कोई अचानक उचाई पे ले जाता है और अचानक फिर वापस ग्राउंड फ्लोर पर ले आता है वैसा एहसास होता है।
पहले के जमाने मे हाथो से चलने वाली बोट हुवा करती थी। बड़ी मुश्किल से वे लोग विवेकानंद रोक पर पहुचे, वहा ध्यानखंड मे सब लोग मेडिटेशन पे बैठते है। गहरी शांति रखनी पड़ती है। विक्रम और सब लोग भी उस ध्यानखंड मे गये और आसान बीछाकर शांति से बैठ गये। थोड़ी ही देर मे जब नारायणप्रसाद ने आँखे खोली और आजूबाजू देखा दो दाई ओर कोने मे बैठे बैठे विक्रम की आँखे बाँध थी लेकिन आँखो से अश्रुधारा बह रही थी। उसके सब्र का बाँध जैसे टूट रहा था। वो महसूस कर रहा था की उसे सहारा देनेवाला इस दुनिया मे कोई नही था। वो बिल्कुल अकेला हो चला था। एक किश्ती उसे मिली थी की जिन के सहारे व ओ इस जनम मे किनारा पार कर लेगा लेकिन उसकी नादानीयत ने शायद उसे भी खो दिया था।
नारायणप्रसाद उठकर खड़े हुए और विक्रम के सिर पर हाथ फिराया। विक्रम ने आँखे खोली और खड़ा होकर ध्यानखंड से बाहर आ गया और समुंदर किनारे की और मूह रख के रोने लगा था। थोड़ी देर मे सबलॉग बाहर आए तो नारायणप्रसाद उसके पास आये और उसे पुछा की क्या हुवा, जब वो कुछ बता नही सका और सिर्फ़ उसकी आँखे रो रही थी। वो अपने आप को बिल्कुल असहाय महसूस कर रहा था। वो अपने अंकल के गले मिल के नन्हे बच्चे की तरह रोने लगा।
नारायणप्रसाद ने उसे रोने दिया और फिर बोले,”अपने आप को अकेले क्यू समजाते हो, जैसे मेरा बेटा किशोरी वैसे ही तू है, तेरा बाप अभी ज़िंदा है”।
विक्रम रोते हुवे बोला,”मेरा इस दुनिया मे आप के सिवा और कोई नही है, मैं बिल्कुल अकेला हो गया हू।“
नारायणप्रसाद ने उसे बहुत दिलासा दिलाया और बोले,’’देखो अब तो हमारी परछाई भी तेरे ही घर आनेवाली है। तू रोता क्यू है, मूज़े मेरी बेटी पर विश्वास है वो तुजे कभी अकेलापन महसूस नही करने देगी।“
थोड़ी देर के बाद वो स्वस्थ हुवा और सब लोग वापस आये। बाद मे थोडा सा आराम कीया और शाम को 7 बजे खाना खाने के बाद विक्रम बोला,”अंकल अगर आप की आज्ञाहो तो मैं थोड़ी देर तक समुंदर किनारे पर जाना चाहता हू,आप लोग रूम पे जाइए मैं एक, दो घंटो मे आ जाउंगा।’’
“क्यू क्या हुवा? अभी भी रोने का इरादा है पगले”, नारायणप्रसाद ने उसके सिर पर हाथ फिरते हुवे बोला।
“नही मैं वादा करता हू की अब कुछ नही होगा आप के होते हुए। लेकिन मैं कुछ देर अकेला रहना चाहता हू, प्लीज़।“ विक्रम बोला।
“क्यू हम लोगो से थक गये है क्या?” सुनंदा पहलीबार बोल पड़ी।
“ऐसा नही कहते बेटी”, उसकी मा बोल पड़ी “एक काम करो सुनंदा तुम विक्रम के साथ जाओ, उसका अकेला जाना ठीक नही और जल्दी लौट आना वरना हमे नींद नही आएगी”।
“हा ये ठीक रहेगा” नारायणप्रसाद ने कहा।
और विक्रम कुछ समजे इसके पहली उन लोगो ने प्लान कर दिया और वे दोनो ने समुंदर किनारे तक जाना प्रारंभ किया। दोनो धीरे धीरे चलते हुवे समुंदर किनारे पर आये। दोनो चुप थे। करीब पुरा दिन पास हो खामोशी के साथ एक पत्थर पर बैठ गये। शाम ढाल चुकी थी और कुछ ज़्यादा भीड़ भी नही थी वहा।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद सुनंदा बोली,”क्यू आज कोई मस्ती नही करनी है क्या ? ऐसे चुप क्यू बैठे हो ?”
विक्रम ने चेहरा घूमाकर सुनंदा के सामने देखा और कुछ नही बोला। सुनंदा ने थोड़ी देर के बाद अपना हाथ विक्रम के हाथ पे रखा। थोड़ी देर विक्रम ऐसे वैसे देखता रहा और फिर सुनंदा के दोनो हाथ अपने दोनो हाथ मे लेकर चारो हाथो को जोड़कर बोला,”सुनंदा मुज से नाराज़ तो नही हो ना ?”
सुनंदा कुछ नही बोली और नज़रे जुकाकर बैठी रही।विक्रम ने थोड़ी देर बाद लाचारी से उसका हाथ छोड़ दिया और चेहरा घूमाकर समुंदर के मौजो को देखने लगा और फिर बोला,”मैं जानता हू मेरी ग़लती माफी के लायक नही है, मैने तेरा दिल दुबारा दुखाया है लेकिन आख़िर मर्द हू ना मूज़े ऐसी आदत नही है। हम फ़ौजी जवान बड़े सख़्त होते है, हमे एक लड़की की भावनाओ का क्या पता की वो क्या चाहती है। जब मैने तुम्हारी हालत देखी तो मुजसे नही देखी गयी, अगर मुज़े पहले से पता होता तो मैं तुजे कभी मजबूर नही करता की मूज़े।। मूज़े… तेरे…शरीर… से…… दूर……रहना…चाहिए……था…” वो खुल के बोल भी नही पा रहा था। इतना कहकर वो फिर से चुप हो गया।
सुनंदा भी चुप थी की वो क्या जवाब दे इस बात को क्यूकी इस बात को लेकर वो भी चौट खा चुकी थी और आज वैसी ही हालत विक्रम की थी। लेकिन उन दोनो मे एक फ़र्क था। सुनंदा स्त्री थी ना सहन कर के भी पिघल जाती है और विक्रम एक मर्द और वो भी मिलिटरी का सख़्त जवान उसे पिघलने मे देरी लगती है। लेकिन वो आज टूटा बिखरा पड़ा था और ऐसी हालत मे कोई भी लड़की सबकुछ भूल जाती है।
सुनंदा के साथ भी ऐसा हो रहा था उसने अपने दोनो हाथ से विक्रम का सिर सहलाया और बोली,”पुरानी बाते याद कर के क्या फायदा, मैं भूल ने की कोशिश कर रही हू आप भी भूल जाइये और आज से नयी ज़िंदगी शुरू करते है”।
विक्रम की आँखे सुनी पड़ी थी, वो कुछ नही बोला और अपना मूह सुनंदा की और किया, शांत बैठा था।
थोड़ी देर वो सुनंदा की हथेली सहलाता रहा और बोला,”हम मिलिटरी वालो को साला शादी ही नही करनी चाहिए, जहा लड़की देखी की शुरू हो गये भूखे शेर की तरह। तू सच्चा कहती थी में पूरा जुंगली हू, एक वैशी जानवर जो एक लड़की को सिर्फ़ नौचना जनता है, उसकी भावनाओ को समजना भी नही आता मूज़े, मैं क्या संसार शुरू करूँगा तेरे साथ।“
सुनंदा बोली,”जंगली तो आप है ही” और हस पड़ी। विक्रम नीरस आँखो से उसे देखता ही रह गया। “कैसा रूप है नारी का कभी गुस्सा करती है, कभी प्यार जताती है, कभी मर मिटती है, कभी क़त्ल कर देती है कैसे चलेगी हमारी दुनिया।“
सुनंदा ने अब विक्रम का हाथ अपने हाथ मे लिया और बोली,”ईश्वर पे श्रद्दा रखो सब कुछ ठीक हो जायेगा, ऐसे हार के बैठोगे तो आप मिलिटरीमेन कैसे हो सकते हो”।
जब मिलिटरी का नाम बीच मे आया तो विक्रम की आँखो मे फिर चमक छा गयी और वो नॉर्मल मूड मे आने लगा और हसने लगा,”कौन से ईश्वर की बात कर रही है तू ? साला शादी हम करे और घर चलाने आये ईश्वर। फिर ग़लती करू मैं और दोष ईश्वर उठाए। रात को मैं तुजे खाउ और कुछ हो जाए तो ईश्वर” वो ज़ोर से हस पड़ा,”हे ईश्वर बचा लेना मूज़े और तेरी इस गुड़िया को” अब वो पूरा नॉर्मल मूड मे आ चुका था।
फिर थोड़ी देर बैठने के बाद विक्रम बोला,”चलो वापस चलते है, जल्दी नही पहुचे तो अंकल और आंटी परेशन हो जायेंगे”।
दोनो वापस चलने लगे, चलते चलते रास्ते मे नॉर्मल बाते करते हुवे मार्केट से होकर रात को 9।30 बजे होटेल पहुचे। होटेल की आजूबाजू सन्नाटा था और सुनंदा ने सहसा विक्रम के कानो पर अपना मूह ले जाकर बोला,”आज रात मैं ज़रूर आप के साथ बैठना चाहती हू, उस दिन मैं थक के सो गयी थी लेकिन आज मैं ग़लती नही करूँगी, मेरा इंतज़ार करना, मैं कुछ भी हो जाये ज़रूर आउंगी।” इतना कहकर दौड़ के रूम मे चली गयी।
विक्रम देखता ही रह गया और फिर रूम मे आया तो अंकल और आंटी दोनो पहले से ही गहरी नींद मे सोये हुवे थे। टूरिस्ट लोग साथ मे होते थे तो रूम अलग अलग होती थी लेकिन जब से वे लोग अकेले थे तब से एक ही रूम मे सब साथ सोते थे। सुनंदा बाथ्रूम मे से बाहर आई और इशारो से विक्रम का हाथ पकड़ कर रूम से बाहर जाने लगी, दोनो रूम से बाहर आके होटेल के टेरेस पे आगे बढ़ने लगे…।।लेकिन ये उसको पता नही था की ये उन प्रेमियो के मिलन के पहली और आखरी रात थी।…......***
आगे के अपडेट मे आयेगा सुनंदा की मौत........या हत्या.....कौन जाने कहा???....
Rohan Nanda
02-Feb-2022 12:25 AM
Very nicely written
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PHOENIX
02-Feb-2022 12:34 AM
Thank you
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Horror lover
26-Jan-2022 11:34 PM
Oh my god , kya khubsurat kahani likhi h...
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PHOENIX
27-Jan-2022 04:31 PM
धन्यवाद्
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PHOENIX
20-Dec-2021 04:18 PM
धन्यवाद, जी हा हर मोड पर सस्पेंस है।
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